मां जल्दी करो ना बहुत तेज भूख लगी है। हां मां जल्दी करो ना पेट में चुहे चलांगे मार रहे हैं। अरे ला तो रही हूं सारा दिन बस मां की ही जान खाते रहो। अरे मां परेशान क्यों होती हो भैया की शादी के बाद भाभी आ जाएगी फिर तो तुम्हें आराम ही आराम हो जाएगा।
अच्छा भाभी क्यों तू नहीं करेगा शादी! कोई अच्छी लड़की मिल जाएगी तो जरूर करूंगा पर पहले आप तो कर लो।हां हां मैं भी देखूंगी बीवियों के आने के बाद तुम दोनों उन्हें कितना परेशान कर पाते हो हाथ में सब्जी का डोंगा लाते हुए उमा ने कहा तो उसकी बात सुनकर उसके दोनों बेटे मुस्कुराने लगे इसके बाद सुशील और अनिल दोनों उंगलियों चाट-चाट कर खाना खाने लगे और फिर अच्छा एक बात और है मां तुम्हारे हाथों का जो स्वाद है ना वो कहीं और नहीं। रहने दे बड़ा आया जब तेरी बहू आ जाएगी तब पूछूंगी की किसके हाथों का स्वाद ज्यादा अच्छा है। वाह मां वाह क्या बात कह दी।
ओए तू चुपचाप खाना खा ज्यादा बोलेगा ना तो तेरी शादी पहले करा दूंगा समझा। सुशील की इस बात को सुनकर उमा सोच में पड़ गई और फिर उसने कहा वैसे आईडिया बुरा नहीं है। मतलब कौन सा आइडिया मां अब अनिल भी तो अब शादी के लायक हो ही गया है ठीक-ठाक कमा भी लेता हैं तो तुम दोनों की शादी एक साथ ही कर देता हूं। अरे अरे यह बात कहां से आ गई शादी की बात तो भैया की चल रही है ना तो उन्हीं की कराओ मुझे इस पचड़े से दूर रखो और वैसे भी मैंने सुना है क्या सुना है तूने? अरे मैंने सुना है भाई तभी तक भाई को प्यार करता है जब तक वह पति नहीं बन जाता एक बार बीवियां आ गई तो फिर तो रायता ही फैलता है क्यों मां। ऐसे कैसे मैं तो हूं ना सब कुछ समेट कर रखने के लिए। उमा ने यह बात यूं ही नहीं कही थी काफी सोच विचार के बाद उमा कुछ दिनों के बाद ही दो सुंदर बहूओं को अपने घर ले आई।
अपने दोनों बेटों के घर बसा कर वह बहुत खुश थी लेकिन यह वाकई इतना आसान भी नहीं था अभी असल रायता तो फैलने बाकी था। कुछ दिनों तक तो सब ठीक चला लेकिन फिर एक दिन सुनो जी मुझे आपसे एक बात करनी है। क्या हो गया बोलो अरे वो अनीता वो तो बहुत ही फिजूल खर्च कर रही है। मतलब ऐसा क्या कर दिया उसने जब देखो खाने में पनीर, मुर्गा बस यही सब बनाती रहती हैं। हां तो क्या हो गया। हुआ यह की जो राशन 6000 में पूरा हो जाना चाहिए था मैडम की वजह से 12000 से 15000 तक पहुंच रहा है ऐसे ही चलता रहा तो हम तो सड़क पर आ जाएंगे। अपनी पत्नी सुनीता की बात सुनकर सुशील भी सोच में पड़ गया। मगर यह कहानी सिर्फ इसी कमरे में नहीं चल रही थी बल्कि दूसरे कमरे में भी यही हाल था छोटे भाई अनिल की पत्नी अनीता भी उससे अपनी जेठानी की शिकायत कर रही थी। देखो जी ऐसे नहीं चलेगा मैं कह देती हूं। पर हुआ क्या तुम्हारी भाभी भिखारियों के खानदान से हैं क्या!
अरे ऐसा क्यों बोल रही हो सारा दिन बस दाल चावल पोहा खिचड़ी यही सब बनाती रहती हैं। अरे चार दिन की जिंदगी है और सिर्फ तीन टाइम खाना है तो कुछ अच्छा तो खाओ। कुल मिलाकर दोनों तरफ एक सी हालत थी सुनीता को उसकी देवरानी अनीता बहुत खर्चीली लगती थी तो वही अनीता को अपनी जेठानी सुनीता एक नंबर की कंजूस लगती थी। धीरे-धीरे यह लड़ाई शिकायतों से बढ़कर हर रोज के झगड़ों और फिर तू तड़ाक पर आ गई। आखिरकार उमा परेशान होकर घर की रसोई का बंटवारा कर दिया दोनों बहूओं के चूल्हे राशन यहां तक की मसालों के डिब्बे तक अलग-अलग हो गए।
दोनों बहुएं अलग-अलग वक्त पर खाना बनाने लगी और रसोई के इस बटवारे के साथ ही दोनों भाइयों ने भी आपस में बातचीत करना बिल्कुल बंद कर दिया। हालांकि दोनों बहुएं अब बहुत खुश थी अब सब बढ़िया है जो खाना है खाओ किसी की रोक-टोक नहीं अब मजा आएगा जब यह ऊंट पटांग खाकर पेट खराब होगा ना तब पता चलेगा दूसरी तरफ उमा इस सबसे बिल्कुल खुश नहीं थी वह बस इसी सोच में डूबी रहती की आखिर कैसे दोनों बहुओं में सुला हो और घर की रसोई फिर से एक हो जाए।
तभी उमा को एक आइडिया आया जिस वक्त रसोई में कोई नहीं था तभी उमा चुपचाप रसोई मैं गई और अनीता के आटे के डिब्बे में से ढेर सारा आटा निकाल लिया फिर मौका देखकर अनीता के सिलेंडर का पाइप निकालकर काफी सारी गैस खिड़की से बाहर उड़ा दी उमा हर रोज ऐसा ही करने लगी कभी वह दाल निकाल लेती तो कभी किसी के चावल कम कर देती। इस वजह से दोनों बहू का राशन बहुत जल्दी खत्म होने लगा दोनों भाइयों पर दुगना खर्च पड़ने लगा और तब एक दिन अरे यार अनीता कहां से लाऊं इतने पैसे भला ऐसा भी क्या बनाती हो रोज जो महीने का राशन 15 दिनों में ही खर्च हो गया अब ऐसा करो तुम रहने दो अब मां ही रसोई चलाएगी तुमसे नहीं हो पाएगा।
उधर घर के दूसरे कमरे में भी कुछ ऐसा ही हाल था एक तो सारा दिन खिचड़ी और दाल चावल खाकर मैं खुद पक चुका हूं और उसमें भी तुम्हारी रसोई में राशन इतनी जल्दी खत्म हो जाता है सिलेंडर पर सिलेंडर भरवाई जा रही हो बस अब बहुत हो गया तुम्हें अपने मायके जाना है तो जाओ यहां एक ही रसोई चलेगी और उसे मेरी मां चलाएगी समझी तुम। उमा का तरीका काम कर गया था दोनों बहुओं को जब कुछ समझ नहीं आया तो दोनों ने हार कर एक दूसरे से सुलह करने का फैसला कर लिया क्योंकि वह दोनों एक दूसरे को तो बर्दाश्त कर सकती थी। पर अपने पतियों की नाराजगी वह नहीं झेल सकती थी और इस तरह उमा की रसोई में खींची लकीर मिट गई और दोनों बहुएं मिलजुल कर अपनी एक रसोई चलने लगी।